सितम्बर ०९,१९८६
विजय भाटी
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मौत आती है छुपालो हमको।
उम्रभर साथ निभाने वालों हमको॥
मै हूँ ऐक गीत दर्द भरा हमदर्द मेरे।
चाहे जिस राग पे गालो हमको॥
यूँ अंधेरों में रात गुजारी रोते रोते।
सुबह होती है सुलालो हमको॥
कुछ तो फुर्सत दो खुदा की इबादत करलूँ।
ओ दर्द-ऐ-दिल, ओ उनके ख्यालों हमको॥
ये भी क्या बात वो आए मुस्कुरा भी न सकूँ।
कुछ तो दो सुकूँ दिल के छालों हमको॥
तुमने खाई थी कसम हर हाल में रहूंगी तेरी।
आज गिरता हूँ, आगोश में उठालो हमको॥
जिद न करो के मै छूउगा भी नही।
वजह है तीन ओ पिलाने वालों हमको॥
इक धर्म की मनाही, दूजी खाई है कसम।
तीसरी पी के आया हूँ न पिलाओ हमको॥
इतनी पीकर के भी है 'विजय' प्यासा-प्यासा।
ऐ घटा सावनी अलको से नहलालो हमको॥