Monday, October 12, 2009
Sunday, October 11, 2009
बिन्दू क्षय

मै जानता हूँ यह अन्याय हुआ है
भीग कर आह में ,
कुछ शब्द बोले
मेरी प्रिय .........तुम कितनी बेवफा.....
कुछ अक्षर लिख गए।
मेरी आंखे उस खिड़की तक गई थी,
अभी -अभी थी तुम ,
अभी -अभी...! अभी - अभी नहीं थी।
शायद अब तुम वो,
नहीं !... नहीं !!...नहीं !!!...
कोई और हो,
क्योंकि, वो सात जन्मों तक मुझसे,
रूठ नहीं सकती।
पंगु मन
पागल हो रोया,
आँखों का कितना अपव्यय हुआ,
दृग जल से बिन्दू क्षय हुआ।
********
विजय भाटी
विजय भाटी
उज्जैन (म.प्र.)
२१ जून १९७७
Subscribe to:
Posts (Atom)