
मै जानता हूँ यह अन्याय हुआ है
भीग कर आह में ,
कुछ शब्द बोले
मेरी प्रिय .........तुम कितनी बेवफा.....
कुछ अक्षर लिख गए।
मेरी आंखे उस खिड़की तक गई थी,
अभी -अभी थी तुम ,
अभी -अभी...! अभी - अभी नहीं थी।
शायद अब तुम वो,
नहीं !... नहीं !!...नहीं !!!...
कोई और हो,
क्योंकि, वो सात जन्मों तक मुझसे,
रूठ नहीं सकती।
पंगु मन
पागल हो रोया,
आँखों का कितना अपव्यय हुआ,
दृग जल से बिन्दू क्षय हुआ।
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विजय भाटी
विजय भाटी
उज्जैन (म.प्र.)
२१ जून १९७७
wah sir kya comment du.. bahut khub..
ReplyDeletekhoob surat ehsaas hain apke....
ReplyDeletekeep sharing!!!
bahut khub sir ...
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