
अवतल उत्तल रहो पर,
तुम्हारा साथ,
समतल आभास।
नीरव नयन अंधे अधर,
फ़िर भी कहता रहा तुम से,
ये अवाक् मन
अपनी या मेरी तुम्हारी,
कहानी
इन नैनो में वर्णित तुम,
जैसे पाषाण पर गढ़ी,
ए़क मूर्ती। इन अधरों पर अंकित तुम,जैसे ए़क खामोश पुस्तक,न कहते हुए भी सब कुछ कहती है। कहती रहती है। ******विजय भाटी २७ जून १९७७
behtarin sir itni shudh hindi... kya baat hai..
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