Wednesday, November 4, 2009

●๋•तसव्वुर ●๋•

दिनांक:०३/नवम्बर/२००९
रात्रि २:४०
रात रुक जाए है, तरन्नुम का नशा छाए है,
तू ग़ज़ल बन के तसव्वुर में उतर जाए है॥
चश्म तक आए तो बन जाए है गम की बदरी,
लब तलक आए तो कोई गीत गुनगुनाए है॥
दिल की बेताबियों, तनहाइयों ने बदली करवट,
सर्द हवा छू के कोई शरारा सा गुजर जाए है॥
फ़िर तेरी याद ने आकर संभाला मुझको,
तल्ख़ लम्हों में शीरी सी घुली जाए है॥
उनींदी रात है, बोझिल साँसें, पथरीली पलकें,
नींद नही आए हो "विजय" न आए तो किधर जाए है॥
*****************
(विजय भाटी)

4 comments:

  1. bahut sunder sir.... kafi behtarin or shandar kawita..

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  2. bahut khoob..........

    likhte rahiye!!

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  3. pyaare khyalaat ko bahut nazukta se byaan kiya aapne very niceeee

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  4. रात रुक जाए है, तरन्नुम का नशा छाए है,
    तू ग़ज़ल बन के तसव्वुर में उतर जाए है॥
    चश्म तक आए तो बन जाए है गम की बदरी,
    लब तलक आए तो कोई गीत गुनगुनाए है॥

    वाह....लबों से कोई गीत मोहब्बत का उतर आया है
    .....!!

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