विजय भाटी
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दिन की पीड़ा दिन भर सहली, रात कचौटे रात रात भर।
मेरे मन की व्यथा कथा में, भीगी पलके रीत गई॥
तेरी ही तो लौ थी जिसमे,
मैने मन का दीपक बाला।
तेरा दर्द कर्ज में लेकर,
मैंने अपना किया दिवाला॥
पर तू न बोली जाते जाते, ओ मेरी निष्ठुर प्रेयसी।
उस एक पल में ही मेरी, सारी उमरिया बीत गई॥
खड़-खड़ खड़के खिड़की किवाड़ें,
चीखे देहरी और दीवारें।
लगता नही मेरा घर है ये,
मरघट जैसा ठोर हुआ रे॥
जब से तू गई यहाँ से,मेरा भी कोई ठोर नही।
मन मारू कैसे प्रेम द्वन्द में, मै हार गया तुम जीत गई॥
तुझे देखने तेरे द्वार से,
जब भी गुजरा आते जाते।
तुने नयन चुराए मेरे
आने की आहट को पाके॥
लिखता मै श्रृंगार करूँ क्या, व्याकुल मन ने कलम छीन ली।
यादों की धुंधली स्याही से, वो लिख करुणा का गीत गई॥
सुबह उमस संध्या को कुंठा,
तड़फ बड़ी ज्यों ज्यों दोपहरी।
ब्रम्हमुहर्त तक गीने तारक,
आंखों से नींद ने आँखे फेरी॥
जीवन सूखे पेड़ की छायाँ, कपसिले बादल सा यौवन।
ओ"विजय" बताओ कब तक जीयोगे, ऋतु प्रेम,प्यार की बीत गई॥
मेरे मन की व्यथा कथा में, भीगी पलके रीत गई॥
तेरी ही तो लौ थी जिसमे,
मैने मन का दीपक बाला।
तेरा दर्द कर्ज में लेकर,
मैंने अपना किया दिवाला॥
पर तू न बोली जाते जाते, ओ मेरी निष्ठुर प्रेयसी।
उस एक पल में ही मेरी, सारी उमरिया बीत गई॥
खड़-खड़ खड़के खिड़की किवाड़ें,
चीखे देहरी और दीवारें।
लगता नही मेरा घर है ये,
मरघट जैसा ठोर हुआ रे॥
जब से तू गई यहाँ से,मेरा भी कोई ठोर नही।
मन मारू कैसे प्रेम द्वन्द में, मै हार गया तुम जीत गई॥
तुझे देखने तेरे द्वार से,
जब भी गुजरा आते जाते।
तुने नयन चुराए मेरे
आने की आहट को पाके॥
लिखता मै श्रृंगार करूँ क्या, व्याकुल मन ने कलम छीन ली।
यादों की धुंधली स्याही से, वो लिख करुणा का गीत गई॥
सुबह उमस संध्या को कुंठा,
तड़फ बड़ी ज्यों ज्यों दोपहरी।
ब्रम्हमुहर्त तक गीने तारक,
आंखों से नींद ने आँखे फेरी॥
जीवन सूखे पेड़ की छायाँ, कपसिले बादल सा यौवन।
ओ"विजय" बताओ कब तक जीयोगे, ऋतु प्रेम,प्यार की बीत गई॥
BAHUT HI BHAUK KAR DIYA AAPKI RACHNA NE SIR... CLAP FOR U...
ReplyDeletebahut karunamayi rachna hai aapki yeh ....
ReplyDeleteaur byaan to kya khoob kiya hai
Ultimate Sir!!!!!!!!
ReplyDeletei am speechless.
i think this is one of the best i ever read.
dil ko choo gayi aapki ye rachna.
keep sharing.
तुझे देखने तेरे द्वार से,
ReplyDeleteजब भी गुजरा आते जाते।
तुने नयन चुराए मेरे
आने की आहट को पाके॥
very nice vijay ji
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